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बिहार मतदाता सूची संशोधन मामला सुप्रीम कोर्ट में

नई दिल्ली/पटना बिहार में विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण कार्य (S.I.R) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SIR वोटर फ्रेंडली है और यह वोटरों के खिलाफ नहीं है. कोर्ट ने बिहार को बदनाम करने पर भी नाराजगी जताई, विशेष रूप से प्रशासनिक सेवाओं में बिहार मूल के लोगों की भारी उपस्थिति के संदर्भ में. वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सुनवाई के दौरान कहा कि पासपोर्ट और अन्य दस्तावेज कम लोगों के पास उपलब्ध हैं. SIR पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि बिहार को ऐसे ही बदनाम न करें. बिहार के लोगों को कमतर नहीं आंकें.

दरअसल SIR को लेकर आज दूसरे दिन सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई चल रही थी. इस दौरान अभिषेक मनु सिंघवी इस मामले को लेकर अलग-अलग दलीलें दे रहे थे. तभी जस्टिस बागची ने अभिषेक मनु सिंघवी से कहा कि उनका आधार बहिष्कार का तर्क समझ में आता है, लेकिन अन्य दस्तावेजों की संख्या का मुद्दा वास्तव में मतदाताओं के अनुकूल है और उनके खिलाफ नहीं है. उन्होंने कहा कि नागरिकता साबित करने वाले दस्तावेजों की संख्या पर भी विचार किया जाना चाहिए.
बता दें, बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा विशेष गहन संशोधन (SIR) के तहत मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर बदलाव का मामला गरमाया हुआ है. चुनाव आयोग ने 65 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटाने का प्रस्ताव रखा, जिसमें 22 लाख मृत, 36 लाख स्थानांतरित, और 7 लाख दोहरे पंजीकरण वाले मतदाता शामिल हैं. विपक्षी दलों ने इसे ‘वोट चोरी’ और बीजेपी के पक्ष में काम करने का आरोप लगाया है. आज सुप्रीम कोर्ट में लगातार दूसरे दिन सुनवाई के दौरान वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अलग-अलग दलीलें दी.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में बिहार की विशेष गहन संशोधन (SIR) प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी है. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जॉयमाल्य बागची की पीठ ने याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनीं. वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन और डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखा. जबकि राकेश द्विवेदी ने चुनाव आयोग का बचाव किया.
सिंघवी ने लाल बाबू हुसैन मामले का हवाला देते हुए कहा कि पूर्व में मतदाता सूची में शामिल लोगों को हटाने के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन जरूरी है. उन्होंने चुनाव आयोग की गाइडलाइंस का जिक्र करते हुए कहा कि आयोग ने पहले झारखंड में भी यही रुख अपनाया था. विपक्ष का आरोप है कि SIR से लाखों मतदाताओं, खासकर गरीब और अल्पसंख्यकों, को वोटिंग अधिकार से वंचित किया जा सकता है. कोर्ट ने आयोग से Aadhaar और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों पर विचार करने को कहा, लेकिन आयोग ने इसे नागरिकता का सबूत मानने से इनकार कर दिया.
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